द न्यू इंडिया फ़ाउंडेशन कमलादेवी चट्टोपाध्याय एनआईएफ़ बुक प्राइज़ अपने पांचवें संस्करण के विजेता की घोषणा करते हैं ~ द चिपको मूवमेंट: ए पीपुल्स हिस्ट्री, प्रख्यात इतिहासकार शेखर पाठक द्वारा लिखित (मनीषा चौधरी द्वारा हिंदी से अनुवादित) ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता है ~


बेंगलूरु, बृहस्पतिवार, 1 दिसंबर 2022: द न्यू इंडिया फ़ाउंडेशन कमलादेवी चट्टोपाध्याय एनआईएफ़ बुक प्राइज़ 2022 के विजेता की घोषणा करते हैं। अपने पांचवें संस्करण में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार इतिहासकार, कार्यकर्ता और लेखक शेखर पाठक द्वारा लिखित पुस्तक द चिपको मूवमेंट: ए पीपल्स मूवमेंट को दिया गया है, जिसका हिंदी से अनुवाद मनीषा चौधरी द्वारा किया गया है। (पर्मानेंट ब्लैक व अशोक यूनिवर्सिटी)।

विजेता का चयन आधुनिक भारतीय इतिहास के व्यापक क्षेत्र और विविध विषयों व दृष्टिकोणों से संबंधित गहन शोध पर आधारित और आकर्षक ढंग से लिखित पांच पुस्तकों की एक विविध लघुसूची से किया गया। इनमें श्वेता एस. बालाकृष्णन द्वारा लिखित एक्सिडेंटल फ़ेमिनिज़्म: जैंडर पैरिटी एंड सेलेक्टिव मोबिलिटी एमंग इंडियाज़ प्रोफ़ेशनल ईलीट (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस); शेखर पाठक द्वारा लिखित द चिपको मूवमेंट: ए पीपुल्स हिस्ट्री (पर्मानेंट ब्लैक); रुक्मिणी एस. द्वारा लिखित होल नंबर्स एंड हाफ़ ट्रुथ्स: व्हाट डेटा कैन एंड कैननॉट टैल अस अबाउट मॉडर्न इंडिया (कॉन्टैक्स्ट/वैस्टलैंड); सुचित्रा विजयन द्वारा लिखित मिडनाइट्स बॉर्डर्स: ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ़ मॉडर्न इंडिया (कॉन्टैक्स्ट/वैस्टलैंड); ग़ज़ाला वहाब द्वारा लिखित बॉर्न ए मुस्लिम: सम ट्रुथ्स अबाउट इस्लाम इन इंडिया (एलेफ़) शामिल हैं।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय एनआईएफ़ बुक प्राइज़ सभी राष्ट्रीयताओं के लेखकों द्वारा आधुनिक/समकालीन भारत पर कथेतर लेखन में उत्कृष्टता को मान्यता देता है और उसका जश्न मनाता है। विजेता को 15 लाख रुपये का नक़द पुरस्कार, एक ट्रॉफ़ी और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

विजेता का चयन छह-सदस्यीय जूरी पैनल द्वारा किया गया जिसमें राजनीति वैज्ञानिक व लेखक नीरजा गोपाल जयल (अध्यक्ष); उद्यमी मनीष सभरवाल; इतिहासकार व लेखक श्रीनाथ राघवन; इतिहासकार व लेखक नयनजोत लाहिरी; पूर्व राजनयिक व लेखक नवतेज सरना; और वकील व लेखक राहुल मत्थन शामिल थे।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय एनआईएफ़ बुक प्राइज़ 2022 के लिए जूरी के प्रशस्ति पत्र में लिखा है: “यह चिपको आंदोलन का एक ऐसे विद्वान द्वारा निर्णायक इतिहास है जिसने लगभग इसे जिया है। यह उचित ही है कि स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं, की नज़रों से किसी आंदोलन की कहानी कहने वाली किताब उतनी ही पठनीय हो जितनी कि यह है। हिंदी से मनीषा चौधरी द्वारा अनुवादित शेखर पाठक की यह पुस्तक सामूहिक कार्रवाई की परिवर्तनकारी शक्ति का एक मनोहर अनुस्मारक है, और यह न केवल इतिहास का एक महत्वपूर्ण कार्य है, बल्कि एक ऐसी कृति है जो समकालीन क्षण से और पारिस्थितिकी और लोकतंत्र के इसके दोहरे संकटों से बात करती है।”


द चिपको मूवमेंट: ए पीपुल्स हिस्ट्री के बारे में

“चिपको आंदोलन का निर्णायक इतिहास” – रामचंद्र गुहा


भारत में, आधुनिक पर्यावरणवाद का आरंभ चिपको आंदोलन के साथ हुआ, जिसकी शुरुआत 1973 में हुई। चूंकि इसका नेतृत्व गांधीवादियों ने किया था, इसमें महिला प्रतिभागी शामिल थीं, यह “आध्यात्मिक” हिमालयी क्षेत्रों में घटित हुआ था, और इसने विरोध की नवीन अहिंसक तकनीकों का इस्तेमाल किया था, इसलिए इसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया। इसने भारतीय वन नीति और व्यावसायीकरण के विनाशकारी परिणामों पर एक बड़ी बहस को भी जन्म दिया। चिपको की वजह से पेड़ों की बड़े पैमाने की कटाई बंद हो गई और भारत ने पारिस्थितिक संतुलन की आवश्यकताओं पर ध्यान देना शुरू किया, जो जंगलों और उनके भीतर के समुदायों को पोषण देता है। अकादमिक और नीति-निर्धारण हलक़ों में इसने सतत विकास पर एक व्यापक बहस को प्रेरित किया - कि क्या भारत पश्चिम के संसाधन-गहन और पूंजी-गहन जीवन के तरीक़ों का अनुसरण कर सकता है।

चिपको के इतिहासकारों ने अब तक इसके दो प्रमुख नेताओं, चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा पर ही ध्यान केंद्रित किया है। “निम्नपदस्थों” की आवाज़ - गौरा देवी जैसे सामान्य पुरुष और महिलाएं जिन्होंने चिपको को इसका वास्तविक रूप दिया था – को दर्ज नहीं किया गया है। शेखर पाठक उनकी घाटियों में रहे हैं, उन्होंने उनके इलाक़ों का अध्ययन किया है, प्रदर्शनकारियों और समुदायों से बात की है और उस समय के स्थानीय समाचार पत्रों को छाना है। वे दिखाते हैं कि नेतृत्व और विचारधारा में चिपको विविध था और यह कभी भी एक विशेष रूप से गांधीवादी आंदोलन नहीं था।

भारतीय पर्यावरणवाद के प्रत्येक विद्वान और गंभीर छात्र को इस पथ-प्रदर्शक पुस्तक की अनुभवजन्य समृद्धि और विश्लेषणात्मक ठोसपन से जुड़ने की आवश्यकता होगी। 

शेखर पाठक एक उत्कृष्ट इतिहासकार-व-ज़मीनी कार्यकर्ता हैं: वे ऐसी अनेक घाटियों में रहे हैं जहां चिपको प्रदर्शन हुए थे, उन्होंने उनके परिदृश्यों का अध्ययन किया, और प्रदर्शनकारियों और समुदायों से लंबे-लंबे वार्तालाप किए। उन्होंने 1970 और 1980 के दशकों के स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से खोजबीन की और आंदोलन के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ साक्षात्कार किए।

 

उन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल के लगभग हर गांव की यात्रा की है, और हिमालय के बारे में उनके ज्ञान को व्यापक रूप से विश्वकोश के समकक्ष माना जाता है। वे पहाड़ों में अथक यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं,  और हर दशक में एक बार पूर्व में नेपाल सीमा पर स्थित अस्कोट गांव से शुरू करके हिमाचल प्रदेश के अरकोट में समाप्त होने वाली 1100 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं। उन्होंने 1983 में पीपुल्स एसोसिएशन फ़ॉर हिमालय एरिया रिसर्च (पहार) की स्थापना की और उमा भट्ट के साथ हिमालय पर्वतश्रृंखला के खोजी पंडित नैन सिंह रावत की जीवनी एशिया की पीठ पर के लेखक हैं। उन्होंने बरसों तक अनेक पर्चों और पहाड़ पत्रिका के कई अंक प्रकाशित किए हैं। वे कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में इतिहास के प्रोफ़ेसर और सैंटर फ़ॉर कंटेम्पोरेरी स्टडीज़, नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी, नई दिल्ली में फ़ेलो भी रहे हैं। उन्हें 2007 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

मनीषा चौधरी एक प्रमुख द्विभाषी संपादक, लेखिका और अनुवादक हैं। नारीवादी प्रकाशन और अनुवाद के क्षेत्र में काम करने के बाद, वे 1986 से प्रकाशन क्षेत्र से जुड़ी पेशेवर रही हैं। वे बच्चों के बहुभाषी प्रकाशन में सक्रिय रही हैं और  उन्होंने बच्चों के बीच पढ़ने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने और प्राथमिक शिक्षा में समानता लाने की दिशा में कई पहल की हैं। सामाजिक परिवर्तन के लिए काम करने की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ, उनका काम सक्रियतावाद और साहित्य दोनों क्षेत्रों में सटीक बैठता है। वर्तमान में वे बच्चों, शिक्षकों और युवाओं के लिए एक प्रकाशन गृह मनन बुक्स की प्रमुख हैं।

एनआईएफ़ बुक प्राइज़ क्या है

2018 में स्थापित, आधुनिक/समकालीन भारत पर सर्वश्रेष्ठ कथेतर पुस्तक को प्रदान किए जाने वाले, कमलादेवी चट्टोपाध्याय एनआईएफ़ बुक प्राइज़ ने, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सभी पहलुओं पर उच्च गुणवत्ता के शोध और लेखन को प्रायोजित करने के इस मिशन को और आगे बढ़ाया है। इस पुरस्कार का नाम महान देशभक्त और संस्था-निर्माता कमलादेवी चट्टोपाध्याय के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम, महिला आंदोलन, शरणार्थी पुनर्वास और हस्तशिल्प के नवीनीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। पुरस्कार के पिछले विजेताओं में, 2018 में अपनी उल्लेखनीय पुस्तक व्हैन क्राइम पेज़: मनी एंड मसल इन इंडियन पॉलिटिक्स (हार्परकॉलिन्स पब्लिशर्स) के लिए मिलन वैष्णव और 2019 में अपनी विद्वतापूर्ण पुस्तक हाउ इंडिया बीकेम डेमोक्रेटिक (पेंगुइन रैंडम हाउस) के लिए ऑर्नित शनि शामिल हैं। 2020 का पुरस्कार संयुक्त रूप से अमित आहूजा को उनकी उत्कृष्ट पहली पुस्तक मोबिलाइज़िंग द मार्जिनलाइज़्ड: एथनिक पार्टीज़ विदाउट एथनिक मूवमेंट्स (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) और जयराम रमेश को उनकी आकर्षक जीवनी वीके कृष्णा मेनन, ए चेकर्ड ब्रिलिएंस (पेंगुइन रैंडम हाउस) के लिए प्रदान किया गया था। 2021 का बुक प्राइज़ दिनयार पटेल ने नौरोजी पर लिखी अपनी विद्वतापूर्ण जीवनी नौरोजी: पायनियर ऑफ़ इंडियन नेशनलिज़्म (हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) के लिए जीता था।


शेखर पाठक एवं मनीषा चौधरी बेंगलूरु लिटरेचर फ़ेस्टिवल में 3 दिसंबर को सायं 3:30 पर नीरजा गोपाल जयल से वार्तालाप करेंगे।

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