क्या प्रकृति को क्षति पहुँचाकर वाकई में नुकसान सिर्फ प्रकृति का होगा?



प्रकृति का सृजन अपने आप में हर सवाल का सटीक जवाब है। किसी प्राणी की वास्तविक आवश्यकता और जीवन की हर एक वस्तु प्रकृति ने अपनी गोद में संजो रखी है। इसका लाखों-करोड़ों प्राणियों के प्रति प्यार, माँ के समान अनमोल और अतुलनीय है, जो अपने सभी बच्चों को समान दृष्टि से देखने का हुनर रखती है। बदले में प्राणियों का भी कर्तव्य है, प्रकृति के मोल को समझना। इसके बिना अपने जीवन की कल्पना करना भी प्राणी के लिए उसकी मृत्यु को निमंत्रण देने के बराबर है। लेकिन सत्य तो यही है कि अन्य प्राणियों से परे मानव अपने जीवन को दांव पर लगाने को उतारू हो चला है। अपने फायदे के लिए लगातार पेड़ों को काटना, अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में प्रवाहित करना या जमीन में गाढ़ना, आदि तमाम कारण हैं जिनके परिणाम दुष्कर हैं। यह विचारणीय है कि क्या वाकई में इसमें मानव का कुछ फायदा है??


पीआर 24x7 के फाउंडर, अतुल मलिकराम कहते हैं कि मध्यप्रदेश के बकस्वाहा के स्वाहा किए जाने वाले बेशकीमती जंगल अब मानव को मूल्यहीन लगने लगे हैं, कारण यह है कि उसकी नजर में हीरों का मोल जीवन से कहीं गुना अधिक है। एक बार स्वयं से यह सवाल करने के बाद, जवाब खुद-ब-खुद मानव को मिल जाएगा कि पृथ्वी से जीवन का विनाश हो जाने के बाद ये हीरे किसके और क्या काम आएँगे? अब समय आ गया है प्रकृति से खिलवाड़ को पूर्णतः रोकने का। सरकार को इसके लिए ठोस नियम बनाने पर गंभीरता से विचार करने की सख्त आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत पेड़ काटने, जंगलों का विनाश करने, जलाशयों को समाप्त करने, अपशिष्ट पदार्थों के अनुचित प्रवाह, अन्य प्राणियों के जीवन को दांव पर लगाने आदि पर भारी मात्रा में दंड सुनिश्चित किए जाएं। ऑक्सीजन तथा जल ही जीवन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, और इन दोनों पर ही वर्तमान में खतरा मंडरा रहा है, जिसके परिणाम भविष्य का विनाश करने वाले होंगे। आर्टिफिशियल ऑक्सीजन के परिणाम हमने इस महामारी में देख ही लिए हैं। कुछ महीनों में ही इसकी भारी मात्रा में कमी सामने आ गई।  


विचार करें कि जब इस क्षति के चलते धरती का हर एक प्राणी आर्टिफिशियल ऑक्सीजन का उपयोग करने को मजबूर हो जाएगा, तो क्या इतने कम समय में इसकी आपूर्ति हो सकेगी, जितने कम समय में हमें पेड़ ऑक्सीजन देते हैं। जब प्रकृति हम पर इतने उपकार करने के लिए अपना फायदा नहीं देखती है, तो हम क्यों अपने फायदे के लिए प्रकृति का नाश कर रहे है? हम अब भी संभल सकते हैं। सरकार के कानूनों के अलावा हम भी यह प्रण जरूर लें कि हम कम से कम एक या दो पेड़ अवश्य लगाएंगे। साथ ही अन्य लोगों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करेंगे और इन्हें काटने का सख्त विरोध करेंगे। अपने-अपने स्तर पर जलाशयों को स्वच्छ रखने में बेहतर योगदान देंगे, और अन्य लोगों द्वारा इन्हें दूषित किए जाने पर अधिकार से रोकेंगे। यदि अब भी हमने पर्यावरण पर ध्यान नहीं दिया, तो हम बहुत ही कम समय में खुद को अँधेरे गर्त में झोंक देंगे, और इससे हमें बाहर निकालने प्रकृति भी नहीं आएगी।

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